पास रहकर भी, दुर लग रही हो
क्यों मुझे तड़पा रही हो
तेरी याद में मर रहा हूँ
क्यों मुझे तड़पा रही हो
दिन में भी और रात में भी
बस तुम ही तुम दिख रही हो
क्यों मुझे तड़पा रही हो
हा कहकर भी ना बोल रही हो
ऐसा क्या गुनाह किया मैंने
क्यों मुझे तड़पा रही हो
नहीं रह सकता तेरे बिना
अब तो हद भी पार हो गयीं
क्यों मुझे तड़पा रही हो
मैं तो सिर्फ तेरी जवाब से अटका हूँ
और मन-ही-मन गुट-गुट के जी रहा हूँ
ऐसा क्या गुनाह किया कि तड़पा रही हो
( शिवानंद सरवदे )
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